भगवान का परम व्यक्तित्व, मोहिनी-मूर्ति, समस्त दानवों को भ्रमित करने में सक्षम था, किंतु राहु इतना चतुर ता कि वह भ्रमित नहीं हुआ. राहु समझ सकता था कि मोहिनी-मूर्ति दानवों से छल कर रही थी, और इसलिए उसने अपनी पोषाक बदली, और देवता का वेष धारण कर लिया, और देवताओं की सभा में बैठ गया. यहाँ व्यक्ति पूछ सकता है कि भगवान का परम व्यक्तित्व राहु का पता क्यों नहीं लगा सका. कारण यह है कि भगवान अमृत पीने के प्रभावों को दर्शाना चाहते थे. चंद्रमा और सूर्य, यद्यपि, राहु के संबंध में सावधान थे. इसलिए जब राहु देवताओं की सभा में प्रविष्ट हुआ, तो चंद्रमा और सूर्य ने उसे तुरंत पहचान लिया, और फिर भगवान के परम व्यक्तित्व को भी उसका आभास हो गया. जब भगवान के परम व्यक्तित्व, मोहिनी-मूर्ति ने राहु का सर उसके शरीर से अलग कर दिया, तो शरीर के मृत हो जाने पर भी सिर जीवत रहा. राहु अपने मुँह से अमृत का पान कर रहा था, और अमृत के उसके शरीर में पहुँचने से पहले उसका सिर काट दिया गया. इसलिए राहु का सिर जीवित रहा जबकि उसका शरीर मृत हो गया. भगवान द्वारा की गई यह अद्भुत लीला का उद्देश्य यह दिखाना था कि अमृत चमत्कारी है.

स्रोत – अभय चरणारविंद स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेज़ी), “श्रीमद् भागवतम्” , आठवाँ सर्ग, अध्याय 9 – पाठ 24 व 25

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