भगवान के परम व्यक्तित्व के प्रति अवैयक्तिकता की धारणा की उपेक्षा करने के क्रम में, उनके पारलौकिक शरीर का शरीर वैज्ञानिक और शरीर रचना के विधान का व्यवस्थित विश्लेषण यहाँ दिया गया है. भगवान के शरीर (उनका ब्रम्हांडीय रूप) के उपलब्ध वर्णन से स्पष्ट है कि भगवान का रूप सामान्य क्षुद्र अवधारणा के रूपों से भिन्न है. किसी भी प्रसंग में, वे निराकार शून्य नहीं हैं. अज्ञान भगवान की पीठ है, और इसलिए मानव के कम बुद्धिमान वर्ग का अज्ञान भी उनकी शारीरिक अवधारणा से भिन्न नहीं है. चूँकि उनका शरीर उपस्थित सभी वस्तुओँ का परम पूर्ण है, व्यक्ति यह नहीं कह सकता कि वे केवल अवैयक्तिक हैं. इसके उलट, भगवान का सटीक वर्णन कहता है कि भगवान अवैयक्तिक और व्यक्तित्व दोनों ही हैं. भगवान का परम व्यक्तित्व भगवान का मूल गुण है, और उनकी अवैयक्तिक दीप्ति और कुछ नहीं बल्कि उनके पारलौकिक शरीर का प्रतिबिंब है. जो इतने भाग्यशाली हैं जिन्हें भगवान को सम्मुख देखने का अवसर मिला है, उनके व्यक्तिगत गुणों का अनुभव कर सकते हैं, जबकि जो निराश हैं और जिन्होंने भगवान के अज्ञानता वाले पक्ष को धारण कर रखा है, या दूसरे शब्दों में, जिन्होंने भगवान को पीठ की ओर से देखा है, वे उन्हें उनके अवैयक्ति गुण में अनुभव करते हैं.

अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी) “श्रीमद् भागवतम्”, द्वितीय सर्ग, अध्याय 6- पाठ 10

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