कोई भी शु्द्ध आत्मा जो आध्यात्मिक विज्ञान की खोज कर रही है, उसे शिष्य उत्तराधिकार (परम्परा) में एक प्रामाणिक आध्यात्मिक गुरु की तलाश करनी चाहिए. भगवान श्रीकृष्ण मूल आध्यात्मिक गुरु हैं. वैदिक ज्ञान को वैसा का वैसा ही, गुरु से शिष्य तक, एक के बाद दूसरे तक सौेप दिया जाता रहा है. बहुत सामान्य स्तर पर भी, यदि किसी को रसायन विज्ञान सीखना है, तो उसे किसी रसायन के शिक्षक के पास जाना होगा; फिर परम आध्यात्मिक निपुणता, कृष्ण चेतना प्राप्त करने के लिए किसी प्रामाणिक आध्यात्मिक गुरु तक पहुँचना कितना अधिक आवश्यक है. किसी शुद्ध आत्मा के लिए किसी प्रामाणिक आध्यात्मिक गुरु तक पहुँचना और बिना किसी पूर्वग्रह के उनके चरण कमलों में समर्पित होना बहुत आवश्यक है. इसलिए श्री चैतन्य महाप्रभु ने सनातन गोस्वामी को निर्देश दिया था: “सबसे पहली और महत्वपूर्ण बात यह है कि वयक्ति को एक प्रामाणिक आध्यात्मिक गुरु को स्वीकार करना चाहिए. वही आध्यात्मिक जीवन की शुरुआत होती है.”

भगवान के व्यक्तित्व, श्रीकृष्ण ने भगवद-गीता में कहा है कि कई जन्मों के बाद ही कोई विद्वान ऋषि उनके प्रति समर्पण करते हैं, और यह कि ऐसे महात्मा को देखना दुर्लभ है, जो सब कुछ वासुदेव (विष्णु की पूर्ण अभिव्यक्ति) से जोड़ पाने में सक्षम हो. ऐसा महात्मा किसी भी बनाई गई – ज्ञान की विवेतनात्मक, आरोही प्रक्रिया के माध्यम से एक मनगढ़ंत – विधि से भगवान तक पहुँचने का प्रयास नहीं करता है. इसके बजाय, वह वियोजक, अवरोही प्रक्रिया को स्वीकार करता है – अर्थात, वह विधि जो सीधे परम भगवान से आती है या उसके प्रामाणिक प्रतिनिधियों के माध्यम से आती है. कई वर्षों तक प्रयास करने के बाद भी, कोई आरोही प्रक्रिया द्वारा भगवान तक नहीं पहुँच सकता है. इस आरोही प्रक्रिया से जो कुछ भी प्राप्त होता है वह अपूर्ण, आंशिक, अवैयक्तिक ज्ञान होता है, जो पूर्ण सत्य से भटक जाता है. दार्शनिक अनुसंधान की अनुभवजन्य प्रक्रिया से, व्यक्ति भौतिक वस्तुओं से आध्यात्मिक विषयों को अलग कर सकता है, लेकिन जब तक सत्य का साधक पूर्ण सत्य की व्यक्तिगत विशेषता तक नहीं पहुंच सकता, तब तक वह बिना किसी वास्तविक पारलौकिक लाभ के केवल सूखा, अवैयक्तिक ज्ञान ही प्राप्त करता है.

स्रोत:अभय चरणारविंद स्वामी प्रभुपाद (2012 संस्करण, अंग्रेजी), “कृष्ण चेतना का वैज्ञानिक आधार”, पृ. 50 

अभय चरणारविंद स्वामी प्रभुपाद (2012 संस्करण, अंग्रेजी), “भगवान का संदेश”, पृ. 38 अभय चरणारविंद स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी), “आत्म-साक्षात्कार का विज्ञान”, पृ. 84

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