जीव केवल अपनी शक्ति द्वारा जीवित रह सकते हैं, बिना त्वचा, मज्जा, अस्थि, रक्त और अन्य वस्तुओं के भी, क्योंकि ऐसा कहा गया है, असंगो’यम पुरुषः– जीव को भौतिक आवरण से कोई लेना देना नहीं होता. हिरण्यकश्यपु ने कई वर्षों तक कठोर तपस्या की थी. निस्संदेह, यह कहा जाता है कि उन्होंने एक सौ स्वर्गीय वर्षों तक तपस्या की. चूँकि देवताओं का एक दिन हमारे छः मास के समान होता है, निश्चित ही यह एक बहुत लंबी अवधि थी. प्रकृति की अपनी रीति से, उनका शरीर केंचुओं, चीटियों, और अन्य परजीवियों द्वारा लगभग पूरा खा लिया गया था, और इसीलिए पहली बार ब्रम्हा भी उन्हें नहीं देख सके थे. यद्यपि, बाद में ब्रम्हा ने पता कर लिया कि हिरण्यकशिपु कहाँ थे, और ब्रम्हा तपस्या पूरी करने के लिए हिरण्यकशिपु की असाधारण शक्ति देखकर आश्चर्यचकित थे. कोई भी यह निष्कर्ष निकाल सकता है कि हिरण्यकश्यपु मर गया था क्योंकि उसका शरीर कई प्रकार से ढँका हुआ था, लेकिन इस ब्रह्मांड के परम भगवान ब्रह्मा, यह समझ सकते थे कि हिरण्यकश्यपु जीवित था लेकिन वह भौतिक तत्वों से ढँका हुआ था.

स्रोत:अभय चरणारविंद स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी), श्रीमद् भागवतम्, सातवाँ सर्ग, अध्याय 15- पाठ 16

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