“चूँकि गोपियाँ कृष्ण से अनन्य रूप से प्रेम करती थीं, योग-माया ने हर समय भगवान के साथ उनके संबंध की रक्षा की, उनके विवाहित होते हुए भी. श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती उज्ज्वल-नीलमणी से इस प्रकार उद्धरण देते हैं:

माया-कल्पित-तादर्क-स्त्री शीलनेनानुसूयुभिः
न जातु व्रजदेविनाम् पतिभिः सह संगमः

“गोपियों के ईर्ष्यालु पतियों ने अपनी पत्नियों के साथ नहीं बल्कि माया द्वारा निर्मित उनकी प्रतिकृतियों के साथ संगम किया. इस प्रकार इन पुरुषों का वास्तव में व्रज की दिव्य महिलाओं के साथ कोई अंतरंग संपर्क नहीं था.” गोपियाँ भगवान की आंतरिक ऊर्जा हैं और कभी भी किसी अन्य जीव से संबंधित नहीं हो सकतीं. कृष्ण ने अन्य पुरुषों के साथ उनके मिथ्या विवाह की व्यवस्था केवल परकीय-रस, किसी विवाहित महिला और उसके प्रेमी के बीच प्रेम की उत्तेजना पैदा करने के लिए की थी. ये गतिविधियाँ बिल्कुल शुद्ध हैं क्योंकि वे भगवान की लीलाएँ हैं, और संतों ने अनादि काल से इन सर्वोच्च आध्यात्मिक घटनाओं का आस्वादन किया है.”

स्रोत:अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेज़ी), श्रीमद् भागवतम्, दसवाँ सर्ग, अध्याय 33- पाठ 37

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