न्यायालय में कोई महत्वपूर्ण व्यक्ति भी कभी-कभी अपराधी पाया जा सकता है, और हो सकता है न्यायाधीश उस पर लाखों रुपये का दंड लगाने में सक्षम हो और जानता हो कि वह व्यक्ति भुगतान कर सकता है. लेकिन हो सकता है कि वह उस व्यक्ति से कहे, “आप बस एक रुपया दे दीजिये”. वह भी दंड ही है, लेकिन उसे बहुत कम कर दिया गया है. उसी प्रकार, हमें अपने पिछले कृत्यों के लिए दंड भोगना होता है. यह सच्चाई है, और हम इससे नहीं बच सकते. लेकिन कर्मणि निर्दहति किंतु च भक्ति-भजम् (ब्रम्ह संहिता 5.54): जो लोग कृष्ण चेतना में आध्यात्मिक सेवा में रत होते हैं उनके कष्ट बहुत कम हो जाते हैं. उदाहरण के लिए, हो सकता है किसी की हत्या होना तय थी, लेकिन चाकू से मारे जाने की बजाय, हो सकता है उसकी उंगली बस थोड़ी सी कट जाए. इस प्रकार से, उन लोगों के लिए जो आध्यात्मिक सेवा में रत होते हैं, पिछले कर्मों की प्रतिक्रियाएँ कम हो जाती हैं. भगवान कृष्ण अपने भक्तों को निश्चित करते हैं, अहम् त्वम् सर्व-पापेभ्यो मोक्षयिस्यमि: “मैं तुम्हें पापमय जीवन के प्रतिफलों से सुरक्षित रखूंगा”. इसलिए भले ही किसी भक्त का इतिहास दुखदाई अपराधी गतिविधियों का रहा हो, संभव है कि उसकी हत्या होने के स्थान पर केवल उसकी उंगली पर छोटा सा घाव हो. फिर किसी भक्त को खतरे का डर क्यों होना चाहिए? जब कोई व्यक्ति सभी दूसरे कर्तव्यों को छोड़ देता है और बस कृष्ण की पारलौकिक सेवा में लग जाता है, तो उसकी कोई अन्य कामना नहीं रह जाती और वह पापमय गतिविधियों के अधीन नहीं होता या वैसा करने की कोई संभावना नहीं रह जाती. हालाँकि यदि, वह पापमय कर्म करता है (स्वेच्छा से नहीं लेकिन संयोगवश), तो कृष्ण उसे सुरक्षा प्रदान करते हैं.

स्रोत: अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी), “रानी कुंती की शिक्षाएँ”, पृ. 55,188 अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2012 संस्करण, अंग्रेजी), “भगवान चैतन्य, स्वर्ण अवतार की शिक्षाएँ”, पृ. 147

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