समस्त ब्रम्हांड में भटक रहे सभी जीवों के बीच, जो सबसे भाग्यशाली होता है वही भगवान के परम व्यक्तित्व के प्रतिनिधि के संपर्क में आता है और इस प्रकार भक्ति सेवा संपन्न करने का अवसर पाता है. वे जो गंभीरता पूर्वक कृष्ण की कृपा चाहते हैं किसी गुरु, कृष्ण के प्रामाणिक प्रतिनिधि के संपर्क में आते हैं. मानसिक अटकलों में रत रहने वाले मायावादी और अपने कर्मों के फल चाहने वाले कर्मी गुरु नहीं बन सकते. गुरु को कृष्ण का प्रत्यक्ष प्रतिनिधि होना चाहिए जो बिना किसी परिवर्तन के कृष्ण के निर्देश को बताता हो. अतः सबसे भाग्यशाली व्यक्ति ही गुरु के संपर्क में आते हैं. जैसा कि वैदिक साहित्य में पुष्टि की गई है, तद्-विज्ञानार्थम् स गुरुम् एवभिगच्छेत: आध्यात्मिक संसार के प्रकरणों को समझने के लिए व्यक्ति को गुरु की खोज करनी पड़ती है. श्रीमद्-भागवतम् इस बिंदु की पुष्टि भी करता है. तस्मद् गुरुम् प्रपद्येत जिज्ञासुः श्रेय उत्तमम: जो व्यक्ति आध्यात्मिक संसार की गतिविधियों को समझने में बहुत रुचि रखता है उसे एक गुरु की ख़ोज करनी चाहिए – जो कृष्ण का प्रामाणिक प्रतिनिधि हो.

स्रोत: अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी), “श्रीमद् भागवतम्”, पाँचवाँ सर्ग, अध्याय 17 – पाठ 11

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