भगवान कृष्ण भगवद गीता में कहते हैं, ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस तथैव भजामि अहम्: “जैसे-जैसे लोग मेरे पास आते हैं, मैं तदनुसार उन्हें प्रतिफल देता हूँ”. तब भी अगर कोई भक्ति में लीन होकर भगवान के पास जाता है, तो भक्त के प्यार को घनीभूत करने के लिए हो सकता है भगवान तुरंत पूर्णरूपेण प्रतिफल न दें. वास्तव में, भगवान सच में प्रतिफल देने वाले हैं. अंततः, एक गंभीर भक्त भगवान से सदैव यही प्रार्थना करता है, “आपको विशुद्ध रूप से प्रेम करने में मेरी सहायता करने की कृपा करें”. इसलिए भगवान की तथाकथित उपेक्षा वास्तव में भक्त की प्रार्थना की पूर्ति है. भगवान कृष्ण स्वयं को हमसे अलग करके उनके प्रति हमारे प्रेम को प्रगाढ़ करते हैं, और इसका परिणाम यह होता है कि हम वह प्राप्त करते हैं जिसे हम वास्तव में चाहते थे और जिसके लिए प्रार्थना करते थे : परम सत्य, कृष्ण के लिए गहन प्रेम. इस प्रकार भगवान कृष्ण की स्पष्ट उपेक्षा वास्तव में उनकी विचारशील पारस्परिकता और हमारी गहरी और शुद्धतम इच्छा की पूर्ति है.

स्रोत:अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेज़ी), श्रीमद् भागवतम्, दसवाँ सर्ग, अध्याय 32- पाठ 20

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