भौतिक संसार में, भौतिकवादी व्यक्तियों द्वारा अपने परिश्रम से एश्वर्य प्राप्त किए जाते हैं. व्यक्ति भौतिक समृद्धि का आनंद तब तक नहीं ले सकता, जब तक वह इसे प्राप्त करने के लिए बहुत मेहनत नहीं करता. लेकिन भगवान के भक्त जो वैकुंठ के वासी हैं उन्हें रत्नों और माणिकों की अलौकिक दशा का आनंद लेने का अवसर मिलता है. रत्न गढ़े हुए सोने से बने आभूषणों को कड़े परिश्रम से नहीं बल्कि भगवान के आशीर्वाद से प्राप्त किया जाता है. दूसरे शब्दों में, वैकुंठ धाम में भक्त, या कि इस भौतिक संसार में भी, निर्धनता के शिकार नहीं होते, जैसा कि कई बार माना जाता है. उनके पास आनंद के लिए पर्याप्त एश्वर्य होते हैं, लेकिन उनको पाने के लिए उन्हें श्रम नहीं करना पड़ता. यह भी कहा जाता है कि वैकुंठ धाम में निवासियों के संघ, भौतिक संसार, बल्कि उच्चतर ग्रहों में भी हमें मिलने वाले संघों से बहुत, बहुत अधिक सुंदर होते हैं. विशेष रूप से उल्लेख किया गया है कि स्त्री के नितंब बहुत आकर्षक होते हैं और वे पुरुष की वासना को उत्तेजित करते हैं, लेकिन वैकुंठ की अद्भुत विशेषता यह है कि यद्यपि महिलाओं के बड़े नितंब और सुंदर चेहरे होते हैं और उन्हें रत्नों और गहने के गहनों से सजाया जाता है, तब भी पुरुष कृष्ण चेतना में इतने लीन रहते हैं कि स्त्रियों के सुंदर शरीर उन्हें आकर्षित नहीं करते. दूसरे शब्दों में, विपरीत लिंग से मेलजोल का आनंद तो है, लेकिन वहाँ कोई यौन संबंध नहीं है. वैकुंठ के निवासियों का आनंद का स्तर उच्च्तर है, इसलिए वहाँ यौन सुख की आवश्यकता नहीं है.

स्रोत: अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी), “श्रीमद् भागवतम्”, तृतीय सर्ग, अध्याय 15 – पाठ 20

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