अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में समस्त भारतीय समाज, ब्रिटिश शासन की व्यवस्था के अनुसार, ऐसे कानून के अधीन था जो हिंदू नियमों से भिन्न था. उसमें बहुत बदलाव था. हिंदुओं द्वारा उपयोग किए जाने वाला वास्तविक हिंदू नियम मूल मनु-स्मृति से बहुत भिन्न था. मुन-स्मृति ब्राह्मण संस्कृति के मानकों का एक उदाहरण है. इतिहास से यह नहीं जाना जा सकता कि मुन-स्मृति कब लिखी गई थी, लेकिन ऐसा माना जाता है कि वह हिंदू नियम है. विधायिका को सामाजिक व्यवस्था को समायोजित करने के लिए प्रतिदिन एक नया कानून पारित करने की आवश्यकता नहीं है. मनु द्वारा दिया गया कानून इतना सटीक है कि इसे सभी कालों के लिए लागू किया जा सकता है. इसे संस्कृत में त्रि-कलादौ कहा जाता है, जिसका अर्थ है “अतीत, वर्तमान और भविष्य के लिए अच्छा.” हालाँकि, वर्तमान हिंदू नियमों में कई परिवर्तन कर दिए गए हैं. यहाँ तक कि स्वर्गीय पंडित जवाहरलाल नेहरू ने स्वयं अपना हिंदू नियम प्रस्तुत किया था. उन्होंने विवाह में तलाक का अधिकार शुरू किया, लेकिन वह मनु-संहिता में नहीं था. इस आधुनिक काल से पहले समस्त मानव समाज मुन-स्मृति द्वारा प्रशासित था. कड़े शब्दों में कहें तो, आधुनिक हिंदू लोग हिंदू शास्त्रों का कड़ाई से पालन नहीं कर रहे हैं.

स्रोत: अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी),”आत्म-साक्षात्कार का विज्ञान”, पृ. 232

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