नहीं, भगवान ने कोई भी धार्मिक संप्रदाय नहीं बनाया. भगवान एक है. वह न हिंदू है न ही मुस्लिम न ही ईसाई. वैदिक समादेश है एकम् ब्रम्ह द्वितीयम् नास्ति: “भगवान एक है; वह दो नहीं हो सकते.”. अतः चाहे आप हिंदू, मुस्लिम, या ईसाई हों, भगवान एक ही है. धर्म का अर्थ स्वयं पर किसी हिंदू, एक मुस्लिम, या ईसाई का ठप्पा लगवाना नहीं है. नहीं, धर्म का अर्थ यह जानना है कि भगवान महान है और हम उनके अधीन हैं और उनके द्वारा ही हमारा पालन किया जाता है. चैतन्य महाप्रभु के अनुसार जीवेर् स्वरूप हय-कृष्णेर नित्य दास: [Cc. मध्य 20.108] “प्रत्येक प्राणी भगवान का एक शाश्वत सेवक है”. यही धर्म है. यदि कोई बस इतना जानता है – कि भगवान महान हैं और हम उनके अधीन हैं, और यह कि हमारा कर्तव्य भगवान की आज्ञाओं का पालन करना है – तो वह धार्मिक है.

कभी-कभी स्वयं भगवान के व्यक्तित्व द्वारा नीचे आकर परलौकिक ज्ञान की शिक्षा दी जाती है; अन्य समयों पर वे अपने विश्वसनीय सेवकों को करुणामयी कर्म करने के लिए नियुक्त करते हैं. उन सभी मसीहाओं को – संत जो परम भगवान के राज्य के पारलौकिक संदेश का प्रचार करने पहले आ चुके हैं या जो भविष्य में आएंगे – परम भगवान के व्यक्तित्व के विश्वसनीय सेवक के रूप में देखना चाहिए. प्रभु यीशु परम भगवान के पुत्र के रूप में प्रकट हुए, मोहम्मद ने स्वयं को परम भगवान के सेवक के रूप में प्रस्तुत किया, और प्रभु चैतन्य ने स्वयं को भगवान के भक्त के रूप में प्रस्तुत किया. परंतु उनकी पहचान चाहे जो भी हो, ऐसे सभी मसीहाओं का विचार एक वस्तु के बारे में समान ही था: इस नश्वर संसार में स्थायी शांति और समृद्धि नहीं हो सकती. वे सभी इस बात पर सहमति देते हैं कि हमें एक दूसरे संसार में जाना है, जहाँ शांति और समृद्ध सचमुच अस्तित्व में हैं. हमेंअपनी चिरकालीन शांति और समृद्धि की खोज भगवान के राज्य में करनी होगी, जो इस नश्वर संसार से परे है.

स्रोत:अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2014 संस्करण, अंग्रेजी), “आत्मज्ञान की खोज”, पृष्ठ 10, 12, 69, 70, 84 
अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (2012 संस्करण, अंग्रेजी),”परम भगवान का संदेश”, पृष्ठ 11 
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